गुण त्रय
हैं रंगत जग जीव सब,
सत रज तम गुण तीन,
ईष्टमन-गेवा–टेक्नी–,
क्या है अदभुत सीन ।
क्या है अदभुत सीन ,
रोज़ ही खिलती होली।
जीव तो –रंग हीन ,
भीगते–चोले-चोली–।
श्याम रंग ही नेक ,
जहाँ घनश्याम बसत हैं।
भगति ही रंग ही एक ,
गुण तीनों ही नसत हैं ।