गुजर (हाइकू)
गुजर होती
न हो पाये बसर
पेट भरता
बूझे न भूख
महँगाई इतनी
कि बस रोटी
नसीब होती
साग बिन खा लेता
हाल है यह
देख अमीर
पाल लेता हूँ बस
एक कुड़न
खाई जो बनी
अमीरों -गरीबों के
बीच आज जो
पाटने का मैं
प्रयत्न करता हूँ
फिर लगता
शायद नहीं
बदलना कुछ भी
नहीं है अब
अन्तर सदा
जो है बना रहेगा
चलेगा सदा
कालान्तर में
युगों तक हमेशा
ही यूँ चलेगा
डॉ मधु त्रिवेदी