गीत(5)
1
मेरा रूप शृंगार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम।
पकड़ हाथ मेरा दिलासा दिलाकर।
कभी नैन से नैन तुम भी मिलाकर।
कहो मुझसे इक बार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम
मुझे सँग तुम्हारे सदा बहते जाना।
जहाँ तुम वहीं पर है मेरा ठिकाना।
नदी हूँ मेरी धार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम।
बना तुमने दिल में लिया जब मेरे घर।
तुम्हीं से बहारें तुम्हीं से खुशी हर।
मेरा पूर्ण संसार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम।
तुम्हें तुमसे ज्यादा मैं पहचानती हूँ।
बिना कुछ कहे बात हर जानती हूँ।
खबर मैं तो अखबार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम।
तुम्हीं देवता हो तुम्हीं अर्चना हो।
तुम्हीं मंत्र सारे तुम्हीं वंदना हो।
पुजारन मैं करतार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम।
अगर बाँट आपस में लेंगे सभी गम।
सभी मुश्किलें पार कर लेंगे फिर हम।
मैं नौका, हो पतवार तुम।
सुनो! बस मेरा प्यार तुम।
2
तुम्हीं पहली पहली मुहब्बत हो मेरी
तुम्हीं ज़िन्दगी खूबसूरत हो मेरी
अधूरी सनम मैं तुम्हारे बिना हूँ
बिना रंग खुशबू की जैसे हिना हूँ
तुम्हारे सिवा अब नहीं चाह कोई
न दिल चाहता है नई राह कोई
तुम्हें रोज देखूँ ये हसरत है मेरी
तुम्हीं ज़िन्दगी खूबसूरत हो मेरी
तुम्हारे खयालों में डूबी रहूँ मैं
लिखूँ गीत कोई तुम्हीं को कहूँ मैं
बसे मन शिवालय में तुम इस तरह हो
जिधर देखती हूँ तुम्हीं हर जगह हो
कि तुम अर्चना सी ही चाहत हो मेरी
तुम्हीं ज़िन्दगी खूबसूरत हो मेरी
अलग ज़िन्दगी से कभी तुम न करना
हमें साथ जीना हमें साथ मरना
तुम्हारे बिना जी नहीं अब सकूँगी
यही बात तुमसे हमेशा कहूँगी
तुम्हीं धड़कनों की जरूरत हो मेरी
तुम्हीं ज़िन्दगी खूबसूरत हो मेरी
3
जरा विचारों लक्ष्मण कैसे, काटा ये विरही जीवन
दरवाजे पर नज़र टिकाये, बैठी रही लिये बस तन
चले गये कुछ बिना कहे ही, क्या बीती होगी मुझ पर
हर पल केवल ये लगता था, चला गया कोई छल कर
निष्ठुर होकर तुमने अपना, भुला दिया सब अपनापन
जरा विचारो लक्ष्मण कैसे , काटा ये विरही जीवन
मात सुमित्रा -कौशल्या को, मैंने हर पल समझाया
लेकिन आँखों के आँसू को, रोक नहीं कोई पाया
देख तात दशरथ के दुख को, तड़प उठा था मेरा मन
जरा विचारो लक्ष्मण कैसे, काटा ये विरही जीवन
यही सोचती रही हमेशा, साथ मुझे भी ले जाते
कभी न कर्तव्यों के आगे, तुम मुझको बाधक पाते
छोड़ गये तुम बीच राह में, भूल गये क्यों सभी वचन
जरा विचारों लक्ष्मण कैसे , काटा ये विरही जीवन
तुम भाई की सेवा करते, सिया बहन की मैं करती
तुम खाने को फल ले आते, मैं नदिया से जल भरती
रह लेती काँटों में हँसकर , साथ तुम्हारे बन जोगन
जरा विचारो लक्ष्मण कैसे, काटा ये विरही जीवन
मैंने अपनी सुध बुध खोई, यादों में दिन रात बही
भूल गई थी पलक झपकना, सिर्फ जोहती बाट रही
पथराई आँखें ये ऐसे, कभी न बरसा फिर सावन
जरा विचारो कैसे लक्ष्मण , काटा ये विरही जीवन
आज सामने देख तुम्हें यूँ , होता है विश्वास नहीं
लगता है ये केवल सपना, जैसे तुम हो पास नहीं
दुख से मेरा गहरा नाता, खुशियाँ हैं मेरी दुश्मन
जरा विचारो लक्ष्मण कैसे, काटा ये विरही जीवन
4
ज़िन्दगी में वक़्त आता और जाता
पर पकड़ कोई कभी इसको न पाता
झोलियाँ भरता खुशी से ये हमारी
दर्द से भी ये कराता रहता यारी
साथ रहता पर हमारे साया बनकर
वक़्त ही हर घाव पर मरहम लगाता
बस जरूरी वक़्त को पहचानना है
तय इसी पर जीतना या हारना है
योग्यता, कमजोरियां सारी हमारी
वक़्त का दर्पण सभी हमको दिखाता
वक़्त के सँग बस कदम अपने बढ़ाना
पर कभी तूफान से घबरा न जाना
ज़िन्दगी का है बहुत अनमोल हर पल
क्या पता कब वक़्त देगा तोड़ नाता
वक़्त करता काम भी जग में निराले
स्वप्न भी रंगीन ये आंखों में पाले
कर्म की हर राह बस हमको दिखाकर
भाग्य अपना खुद हमें लिखना सिखाता
5
नया हूँ मैं पुराना भी
मुझे सब साल कहते हैं
रुके बिन ही सदा चलता
कभी भी मैं नहीं थकता
प्रकृति का भाल कहते हैं
मुझे सब साल कहते हैं
खुशी है तो कभी गम है
बदलता रहता मौसम है
समय की चाल कहते हैं
मुझे सब साल कहते हैं
मुझे दिन मास में गिनते
निकलती साँस में गिनते
मुझी को काल कहते हैं
मुझे सब साल कहते हैं
दिसम्बर में बिछड़ जाता
मिलूँ जब जनवरी आता
नई स्वर ताल कहते हैं
मुझे सब साल कहते हैं
खज़ाना याद का भारी
लिए खेलूँ नई पारी
धनी टकसाल कहते हैं
मुझे सब साल कहते हैं
डॉ अर्चना गुप्ता