गीत
विषय-बदरा
विधा-गीत
बिजली कौंधे #बदरा छाए
बारिश की रुत अगन लगाए
बैरी नैना झमझम बरसे
मेरा भीगा बदन जलाए।
#बैरी बदरा गरजे-बरसे
बागों में हरियाली छाई
मोर, पपीहा, कोयल झूमें
पावस रुत मतवाली आई।
राह तकूँ मैं दीप जलाकर-
पिया मिलन की लगन लगाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।।
लंबी पेंग गगन को चूमे
गोरी का गजरा लहराए
धानी चूनर ,बहका कजरा
#काले-काले बदरा छाए।
बूँदों ने छेड़ी है सरगम-
जगमग जुगनू वन इठलाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।
पायल, बिंदी, चूड़ी, कुमकुम
जीवन का श्रृंगार सजन से
सखी-सहेली छेड़ें मुझको
हँसी-ठिठोली करें पवन से।
काले कंबल बनकर छाए
रिमझिम बारिश चमन खिलाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर