गीत
परदेसी मीत मेरे
मेरी प्रीत बुलाती है,
बन जाओ गीत मेरे
तेरी याद सताती है।
बारिश के मौसम में
बूँदों की सरगम में
चूड़ी की खनखन में
पायल की छमछम में
संगीत बनो मेरे
नहीं राग सुहाती है।
परदेसी मीत मेरे….।
मेरी रातें सूनी हैं
मेरे दिन भी कुंवारे हैं,
बातें नहीं भूली हैं
अरमान सहारे हैं
दिख जाओ चाँद मेरे
रातें तड़पाती हैं
परदेसी मीत मेरे….।
तुझे कैसे दूँ संदेश
तुझे कैसे लिखूँ पाती
मेरे नयन लजाते हैं
मैं कुछ नहीं कह पाती
अहसास बनो मेरे
हर बात रुलाती है
परदेसी मीत मेरे….।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर