गीत
बूंदों की खनखन
बारिश में बूँदों की खनखन आहट तेरी लाती है
धड़कन में साँसों की सरगम गीत प्रेम के गाती है।
घटा घिरी घनघोर गगन में
धरती भी हर्षाती है
ढ़ोल-नगाड़े नभ में बाजें
बारिश धूम मचाती है
तीक्ष्ण दामिनी रह-रह दमके-
उर में अगन लगाती है।
बारिश में बूँदों की खनखन…..।
चूड़ी,बिछिया,झुमका,पायल
तेरी याद दिलाते हैं
झूला,कजरी,गजरा,चुनरी
मेले पास बुलाते हैं
सावन की ऋतु मन को भाती-
नेह सरस बरसाती है।
बारिश में बूँदों की खनखन….।
सौंधी माट्टी की खुशबू भी
मन-उन्मादित कर जाती
हरियाली उपवन में छाकर
राग मधुर सा भर जाती
प्रीत पिया की मन सरसाती-
नव संगीत सुनाती है।
बारिश में बूँदों की खनखन…।
रिमझिम सावन की फुहार छू
यौवन मेरा मदमाता
प्रेम नगर में धूम मचाकर
मधुरिम सावन मुस्काता
रजत चाँदनी प्यार लुटाती-
आँगन में भर जाती है।
बारिश में बूँदों की खनखन…।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” है”
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर