गीत
जीवन साथी
जीवन पथ पर साथ चले हम थामे बाहें बाहों में
चूमे इक-दूजे के छाले पाए थे जो राहों में।
कितने पतझड़ सावन आए कितने पथ में शूल मिले
मरुधर की प्यासी धरती पर अपने आँगन फूल खिले
तुमसे रौशन मेरा जीवन तुम दीपक मैं हूँ बाती
एक डगर के साथी हम-तुम कभी नहीं प्रतिकूल चले
माटी की सौंधी खुश्बू ज्यों फैली हुई दिशाओं में
जीवन पथ पर साथ चले हम थामे बाहें बाहों में।
छत पर तकते चाँद-सितारे करते थे मीठी बातें
नयन-नयन की भाषा पढ़ते आँखों में गुज़री रातें
सुधबुध बिसराकर अधरों ने मतवाला नित जाम पिया
केश घटा बिखरी मुखमंडल लटें दे गईं सौगातें
नित यौवन हमने पाया था हँसती हुई बहारों में
जीवन पथ पर साथ चले हम थामे बाहें बाहों में।
तुम आए मेरे जीवन में इक नूतन उपहार मिला
चित्र उकेरे थे सपनों में आज उन्हें आकार मिला
सरगम मेरी साँसों की तुम सजे अधर पर मुस्काए
तन-मन इक-दूजे के होकर जीने का आधार मिला
अपनापन, विश्वास निभाया रूप समाया आँखों में
जीवन पथ पर साथ चले हम थामे बाहें बाहों में।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर