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20 Jun 2018 · 1 min read

गीत

“माँ”
****
नादानी में मैंने माँ को
कितना नाच नचाया था।
माँ ने मुझको गोदी लेकर
ढेरों लाड़ लड़ाया था।

बारिश की बूँदों में माँ तू
छतरी लेकर आती थी
कागज़ की फिर नाव बनाकर
चुंबन देकर जाती थी।

गीला बदन निरख कर तू ने-
आँचल में दुबकाया था।
ढेरों लाड़ लड़ाया था।।

देख अश्रु मेरे नयनों में
छिप-छिपकर तू रोई थी
अंक सुलाकर मुझको अपनी
तू ने निद्रा खोई थी।

मेरे सपनों को सहलाकर-
अपना चैन गँवाया था।
ढेरों लाड़ लड़ाया था।।

देख अकेला रोता मुझको
गोदी लेकर दुलराया
बनी खिलौना साथ हँसी तू
लट्टू देकर फुसलाया।

तुझसे मेरा जीवन है माँ-
तू ने मुझे हँसाया था।
ढेरों लाड़ लड़ाया था।।

गुरु ग्रंथ की बनी तू वाणी
तू तुलसी की चौपाई
सूरपदों की मातृ यशोदा
फूलों जैसी मुस्काई।

मैं तेरी बाहों में झूली-
तू ने गीत सुनाया था।
ढेरों लाड़ लड़ाया था।।

याद करूँ जब बचपन अपना
मैं सपनों में खो जाती
तेरे आँचल की ममता पा
परियों के घर हो आती।

आज कहे ‘रजनी’ माँ तूने-
हर सुख को ठुकराया था।
ढेरों लाड़ लड़ाया था।।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
Tag: गीत
249 Views
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