गीत
“पाती ”
बैठ सँजोए कितने सपने
यादों पर मनमीत लिखूँ,
महक उठी बेला उपवन में
एक नवल मैं गीत लिखूँ।
जूही, बेला केश सजाकर
तन-मन मेरा महकाया
अधरों पर मुस्कान खिलाकर
आँचल तेरा सरसाया।
पायल की सरगम पर तेरी-
पवन बसंती प्रीत लिखूँ।
एक नवल मैं गीत लिखूँ।।
किंचित मृदु भावों से भरकर
अंतस मन पुलकित होता
भीनी माटी की खुशबू से
रोम-रोम सुरभित होता।
सजा रूप कलियों से तेरा-
प्रेम- जगत की रीत लिखूँ।
एक नवल मैं गीत लिखूँ।।
साँसों में विश्वास जगाकर
अरमानों को सहलाया
फूलों की रंगत छितराकर
घर-आँगन को दमकाया।
नयनों में भरकर आँसू मैं-
आज विरह संगीत लिखूँ।
एक नवल मैं गीत लिखूँ।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर