गीत
कब तक हम गद्दारों पर यों, बोलो दया दिखाएँगे।
वीर लाड़ले भारत माँ के, अपनी जान गँवाएँगे।।
धींगामुश्ती का खेल भला,कब तक खेला जाएगा।
कब तक लिपट तिरंगे में, सैनिक का शव आएगा।
कब तक यूँ ही बातों से हम,अपना काम चलाएंगे।
कब तक यूँ ही गद्दारों पर—–
बहुत हो चुका और नहीं अब,रोको पत्थरबाजों को।
पाक परस्ती करने वाले, गद्दारों लफ्फाजों को।
भोले-भाले लोगों का ये ,कब तक खून बहाएँगे।
कब तक यूँ ही गद्दारों पर—-
पुछा हुआ सिंदूर माँग का, पूछ रहा है बोलो तो।
बूढ़ी माँ की दुश्वारी पर,अपना मुँह अब खोलो तो।
बिना पिता के कितने बच्चे, बोलो पाले जाएँगे।
कब तक यूँ ही गद्दारों पर—–
गीली मेंहदी सिसक रही है, उत्तर की अभिलाषा में।
चाह रही परिवर्तन हो अब,संस्कृति की परिभाषा में।
शांति अहिंसा के गीतों को,बोलो कब तक गाएँगे।
कब तक यूँ ही गद्दारों पर—-
कितने भेजे जेल दरिंदे, कितने हमने मारे हैं।
बहुत हो चुका बंद करो अब, ये तो जुमले नारे हैं।
कब लाहौर कराची पर हम,ध्वज अपना फहराएंगे।
कब तक यूँ ही गद्दारों पर—
डाॅ बिपिन पाण्डेय