गीत
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर
चले तुम गए दृग में आँसू सजाकर
बस गये हो तुम सितारों में जाकर
यादों में आकर बरसने लगे हो
जब से गए रूठी तब से बाहारें
कलियाँ नहीं मुस्कुराती है खिलकर
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर
तुम्हें ढूँढ पाते न आँसू हमारे
हमें रोक पाते न बंधन तुम्हारे
राह मे रोज दृग को बिछाए हुए हैं
चले क्यों गए मुझसे नाता छुड़ाकर
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर
प्रेम से न बढकर कोई भावना है
न बिरहा से उपर कोई यातना है
आपका प्रेम हीं है बची एक थाती
इसी प्रेम अग्नि में जीती हूँ जलकर
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर ।
प्रमिला श्री ( धनबाद )