गीत
दिन भर दीपक बेचे लाया,फिर पूजा का तेल।
दीपमालिका पर्व मनाना,बनी ज़िंदगी रेल।
रोटी और दवाई ख़ातिर,करता भागमभाग।
सोच यही है कैसे भी हो,किस्मत जाए जाग।
लक्ष्मी माता के पूजन के,करता लाख उपाय।
पता नहीं क्यों माता रूठीं,कभी न बढ़ती आय।
कैसे-कैसे खेल रही है,अपनी किस्मत खेल।
दिन भर दीपक बेचे लाया,फिर पूजा का तेल।
दिन भर की तैयारी घूमे,हाट माॅल बाज़ार।
खील खिलौने और मिठाई, लाए बंदनवार।
तरह-तरह के लिए पटाखे,खर्चे बीस हज़ार।
पैसे वालों की दीवाली,उनके सब त्यौहार।
जन साधारण का कुबेर से,कैसे होगा मेल।
दिनभर दीपक बेचे लाया,फिर पूजा का तेल।
जगमग लड़ियाँ झूम रही हैं,करतीं महल प्रकाश।
झोपड़ियों में जलता दीपक,करता तम का नाश।
देह थकी है जेबें खाली,मत समझो मजबूर।
मन के राजा हैं हम साहब!, कहलाते मजदूर।
चाहे जैसी बने परिस्थिति,सब लेते हैं झेल।
दिन भर दीपक बेचे लाया,फिर पूजा का तेल।
डाॅ बिपिन पाण्डेय