गीत
गीत
तुम प्रेम समन्दर उर्मिल हो,गागर में स्नेहिल सागर हो।
तुम सहज स्नेह की रत्नावलि,अमृत घट का प्रिय नागर हो।
तुम हृदय हमेशा रहते हो,प्रिय मित्र बने विचरण करते।
तृप्त किया करते हो प्रियवर,मधु सावन बने चरण रखते।
तुम रस प्रधान मोहक रसिया,अति अनुपम मधुरिम नायक हो।
है नाम तुम्हारा “अमर प्यार”,
प्रिय रंग स्वर्ण सुखदायक हो।
तुम शोभा बनकर रहते हो,निर्मल बादल की छाया हो।
तुम प्रेम सिन्धु की लहरों में,चमकीली हीरक काया हो।
तुम मोती पन्ना रत्नाकर,मधु राग-रागिनी अमृत हो।
है हृदय तुम्हारा शुभ्र स्वच्छ,नित भव्य मनोहर शुभ कृत हो।
तुम खिले खिले अविरल प्रज्वल,देदीप्यमान अति मादक हो।
मुखड़े पर तेरे चंद्रप्रभा,मोदक मोहन हिय पालक हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।