गीत
गीत (सजल)
गाली और प्रशंसा दोनों,जब लगते हैं एक समान।
तब समझो शिव सिद्धि निकट है,होना है अनुपम बलवान।
सदा समर्थन या विरोध का,रखता कभी नहीं जो ख्याल।
उसके आगे नतमस्तक हैं,इस जगती के सारे लाल।।
जब कबीर तुलसी का जीवन,लगने लगता सदा महान।
तब समझो शिव सिद्धि निकट है,होना है अनुपम बलवान।।
निर्दलीय निर्गुट बन चलता,रखता संतों से ही मेल।
नहीं किसी से याचन करता,मस्ती का वह खेले खेल।।
एक अकेला ही काफी है,सदा करे जब ईश्वर ध्यान।
तब समझो शिव सिद्धि निकट है,होना है अनुपम बलवान।।
है संतोष वृत्ति झोली में,यह उसका प्रियतम आहार।
जीवन यापन करे इसी से,ग्रहण करे सुन्दर आकार।।
निर्मलता के मूल मंत्र का,रखता जब है हरदम ज्ञान।
तब समझो शिव सिद्धि निकट है,होना है अनुपम बलवान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।