गीत
प्रेम तो दे दिया पर दिया मान कब
पूछ कर प्रश्न ये रो रही नारियां
दायरों में बँधी दर्द सहती गई
पाँव से रौद दी रोज़ ये क्यारियां …..
मान अपमान के बीच परखी गई
प्रेम के दांव के साथ उलझी कई
न्यूनता से सदा उपनहन कर लिया
पूर्णता से मगर घर -बगर कर दिया
भाल से भाग्य तक यह सुशोभित रही
रक्त चंदन सरीखी की अमल धारियां …..
पूछकर प्रश्न ये रो रही नारियाँ
रूप देखे सभी रंग देखे सभी
और सीमित करे गुण इसी में कहीं
भाव पढ़ने न आए जगत को कभी
दृष्टि खोली नहीं रूढिगत ने अभी
शोक के क्रूर फंदे बँधे जा रहे
क्यों प्रताड़ित हुई जाल की मछलियां . ….
पूछ कर प्रश्न यह रो रही नारियां
तीव्र वाणी चुभे घाँव मन पर लगे
दर किनारे किया रोज सम्मान को
बाँटती ही रही नेह ममता सदा
कीर सी रट रही प्रेम की तान को
ज्ञान की ज्योत मन में जला के सदा
जाप करती रही प्रीत मे उंगलियां . ….
पूछकर प्रश्न ये रो रही नारियां
मनीषा जोशी मनी