गीत
धरती जल रही है औ सूर्य हंस रहा है।
वातावरण को देखो ये कैसे डस रहा है।
कांक्रीट के वनों में हम अब रह रहे हैं।
हरियाली की बातें किस्सों मे कह रहे हैं।
सीमेंट जैसे सपने यहाँ पर जमे हुए हैं।
मनी प्लांट मे ही देखो सभी रमे हुए हैं।
स्वार्थ यहां कैसे हम सबको कस रहा है।
पानी की पानीदारी फिर से लुट गई है।
कहते सभी यही कि यह त्रासदी नयी है।
वनों ने ये सब देखकर प्राण तज दिया है
हरियाली ने खून के आंसुओं को पिया है।
बुद्धिमान मानव दल- दल में धंस रहा है।
बहुमंजिली इमारत सबको चिढ़ा रही है।
हम नष्ट हो रहे हैं ये स्थिति बता रही है।
आता भविष्य धरा को संदेह से है देखा।
कैसा ये भाग्य है और कैसी है हस्तरेखा।
भूल गये इस धरा का जो भी यश रहा है।
धरती जल रही है औ सूर्य हंस रहा है।
वातावरण को देखो ये कैसे डस रहा है।
अनिल अयान सतना