#गीत /
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कुछ दिन अदला-बदली कर लें【प्रणय प्रभात】
■ कुछ दिन अदला-बदली कर लें हम अपने अरमानों की।
मुझको धरती की चाहत है, तुझको चाह उड़ानों की।
दे आराम थकन को मेरी, ये ले मेरे पर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
“■ नहीं अधूरापन जाएगा,
मगर टीस मद्धम होगी।
नए-नए कुछ अनुभव होंगे, नीरसता ही कम होगी।
तेरी गठरी मेरे सर रख, मेरी अपने सर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
■ क्यूँ कर रोना मजबूरी पे, देना भाव अभावों को?
कौन बुलाए न्यौता दे कर इन बेरहम तनावों को?
कुछ अच्छे पल दे मुस्का कर, बदले में हँस कर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
😊😊😊😊