गीत
वाक्य का विन्यास पकड़ो,
शब्द की बखिया उधेड़ो।
और देखो खोल परतें,
किस हृदय में क्या भरा है ?
बोलते यूँ तो सभी से, घृत लगी तैलीय बातें
पर हृदय में वञ्चना की सूखती रोटी मिलेगी।
कर रहे दावे निरंतर दीनता के देवपद की,
मानवियता तक उन्हीं की पार्श्व में सोती मिलेगी।
जो सुना हो अनसुना कर,
चेतना के नेत्र खोलो,
और देखो अनकहा जो,
उस कथन में क्या भरा है ?
लाभ की कुछ योजनाओं में, निवेशित भाव सबके,
बस जुए का खेल है ये, जिंदगी औ भावनाएँ।
इस धरा की हर इकाई स्वयं का हित साधने को,
दे रही नेपथ्य से इक दूसरे को यातनाएँ।
पुण्य की अवधारणा में,
स्वार्थ की इच्छा टटोलो,
और देखो सुरसरी के,
गूढ़ तल में क्या भरा है..?
© शिवा अवस्थी