गीत
झिलमिलाते स्वप्न सी
आभास हो तुम
भोर के पहली किरण की
आस हो तुम
रात की अनुगूँज
अन्तर्वेदना हो
मूर्तिमय शबनम
प्रभाती चेतना हो
मखमली सी सांध्य रवि के
पास हो तुम
चन्द्र को आलोक
और रवि उष्णता।
दे धरा को धैर्य
नभ को नव्यता I
मौन को मुस्कान देती कल्पना
विश्वास हो तुम
शोर संशय दूर करती
बाँचती नीरव प्रभा।
व्याकरण के घर में करती
स्वर सुरों की एक सभा ।
शब्द की प्रस्तावना का एक नया
इतिहास हो तुम।