#गीत
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■ चंद्रमा आंसुओं में नहाता रहा।।
【प्रणय प्रभात】
★ दिल से लावा बहा वेदना का कभी,
ज्वार सागर सी आंखों में आता रहा।
चांदनी मुस्कुराती रही रात भर,
चंद्रमा आंसुओं में नहाता रहा।।
★ वो थी लाली मेरे प्यार के ख़ून की,
जिसको मेंहदी की रंगत समझते थे सब।
वो थीं श्रद्धा के दामन की कुछ धज्जियां,
जिसको दुनिया में शौहरत समझते थे सब।
इक छलावा था वो और छलता रहा,
दिल था नादान बातों में आता रहा।
चांदनी मुस्कुराती रही रात भर,
चंद्रमा आंसुओं में नहाता रहा।।
★ सच के पर्दे के पीछे कई झूठ थे,
हमको पर्दों ने बरसों लुभाए रखा।
नाम ले के वफ़ा का या खा के क़सम,
उसने हर मन का किस्सा छुपाए रखा।
मैं उसे भेंट करता रहा फूल बस,
वो नज़ाक़त से कांटे चुभाता रहा।
चांदनी मुस्कुराती रही रात भर,
चंद्रमा आंसुओं में नहाता रहा।।
★ अश्क़ पीने का हम को सलीक़ा न था,
ये सलीक़ा किसी ने सिखाया हमें।
थे उजाले बहुत झूठ के सिर चढ़े,
बस अंधेरा बहुत रास आया हमें।
महफ़िलों से कटे भाईं तन्हाइयां,
दिल का नासूर यूं कसमसाता रहा।
चांदनी मुस्कुराती रही रात भर,
चंद्रमा आंसुओं में नहाता रहा।।
★ उसकी रग़-रग़ में धोखे भरे थे बहुत,
जिसको अमृत समझते थे वो था ज़हर,
उससे केवल दग़ा ही मिला हर घड़ी,
हमने जिस पे भरोसा किया उम्र भर।
दे के हमको भरोसा बहुत प्यार का,
दिल में मूरत किसी की सजाता रहा।
चांदनी मुस्कुराती रही रात भर,
चंद्रमा आंसुओं में नहाता रहा।।
■ प्रणय प्रभात ■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)