गीत
गीत
टूटी सड़कें, पसरे गड्ढे,
अपना सफर तो जारी है
आसमान में छेद किया है,
दिल अपना त्योहारी है।
सुबह सवेरे निकले घर से
क्या पूरब कहाँ पश्चिम है
दगा दे रहे सूरज को सब
दिल अपना सरकारी है।
आओ आकर देख लो तुम भी
कदमों से नापी दुनिया
उठते गिरते बढ़ गय आगे
छालों से भी यारी है।।
अभी अभी तो यहीं कहीं पर
फ़ाइल देखी किस्मत की
फेंका पैसा, खुल गई यारो
क्या अपनी लाचारी है।।
घर से दफ्तर,दफ्तर से घर
हर दिन का रूटीन यही
मुँह चुराता घर का चूल्हा
महँगी सब तरकारी है।।
सूर्यकांत द्विवेदी