गीत
कब तक गम बर्दास्त करोगे.
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– डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’, कोटा.
कब तक गम बर्दाश्त करोगे.
बिन गुनाह दोषी ठहरोगे.
बोल अरे मजदूर -किसान.
सोच अरे ओ छात्र -जवान.
अब तो कर ख़ुद की पहिचान.
खाना सबको दे खुद भूखा सोता है.
फटी लँगोटी में जीवन भर रोता है.
ख़ुद के गम संग औरों के गम ढोता है.
कब तक यूं चुपचाप रहोगे.
कब तक ना दो-चार करोगे.
बिन गुनाह दोषी ठहरोगे.
सोच अरे……….
तू मूरख है बाकी सब हर फ़न माहिर.
है. तेरी विपदा. सारे में जग जाहिर.
तू है कर्मशील डरता फिर क्यों आखिर.
चल उठ थाम्ह मशालें अब संघर्षों की.
लामबन्द हो छीन कमाई वर्षों की.
देर न कर आई बेला उत्कर्षों की।
क्यों बेलाग न बात करोगे .
रोज जियोगे -रोज मरोगे.
बेमतलब क्यों धीर धरोगे.
बिन गुनाह दोषी ठहरोगे.
सोच अरे………….
साफ बोल दुश्मन से हम न डरेंगे.
दे जवाब कह दे ना माफ़ करेंगे .
हक लेंगे शोषक से लड़े-भिड़ेंगे.
अन्न उगाकर हमें न अब भूखा रहना.
लफ़्फ़ाजों संग हमें नहीं है अब बहना.
कठोर श्रम के बावजूद यूं ना ढहना.
क्यों बेझिझक न प्रश्न करोगे.
आश्वासन की घास चरोगे.
जमाखोर का कर्ज़ भरोग.
बिन. गुनाह दोषी ठहरोगे.
सोच अरे …………
@ डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता /साहित्यकार
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