गीत
किसान आंदोलन पर गीत
जो मॉर्निंग वाक को ही समझें, लो हो गई सैर बागानों की।
वे क्या समझेंगे क्या पीड़ा होती है यार किसानों की।।
जो मॉर्निंग वाक को——-
खेतों की भुरभुरी मिट्टी और कदहर को भला ये क्या जानें।
कैसे उगती है मूंग, उड़द, अरहर को भला ये क्या जानें।
जिनको न पता परिभाषा क्या, है खेत और खलिहानों की।
वे क्या समझेंगे क्या पीड़ा होती है यार किसानों की।।
जो मॉर्निंग वाक को——-
ये क्या जानें, कैसे, कब-कब, हाथों में पड़ते छाले हैं।
ये तो मूली, गोभी, गाजर, गमलों में उगाने वाले हैं।।
है जिनकी फितरत रही सदा, अपनी सियासत चमकाने की।
वे क्या समझेंगे क्या पीड़ा होती है यार किसानों की।।
जो मॉर्निंग वाक को——-
जिनका रहना, खाना, पीना, अंदाज अलग है जीने का।
ऐसी में रहने वाले कब, क्या जानें मोल पसीने का।।
गजदंतों के जैसी होती, हमदर्दी सिर्फ दिखाने की।
वे क्या समझेंगे क्या पीड़ा होती है यार किसानों की।।
जो मॉर्निंग वाक को——-
-विपिन कुमार शर्मा
रामपुर, 9719046900