गीत
आँखे तरसें हरियाली को बगिया लहूलुहान हुई
प्रेम के गीत सुनाऊँ कैसे धरती जब वीरान हुई,
डसती हैं सूरज की किरनें चाँद जलाता है मन को
पग-पग मौन के गहरे साए जीवन मौत समान हुई,
छलनी हैं कलियों के सीने खून में लतपत पात सभी
और न जाने कब तक होगी अश्कों की बरसात अभी,
ख़ून से होली खेल रही हैं नफ़रत अब बलवान हुई,
प्रेम के गीत सुनाऊँ कैसे धरती जब वीरान हुई……2