गीत
तौबा- तौबा करते- करते प्यार हो गया।
आँखों ही आँखों में कब इक़रार हो गया।
कुछ ना बोली, मुख ना खोली।
जानूँ ना मैं, आँख- मिचौली।
मिलते- जुलते कब दिल, बेक़रार हो गया।
पलकों के पीछे से, कोई वार हो गया।
अमुवा ऊपर कोयल बोली।
मैं तो कोई राज़ न खोली।
जाने कैसे तीर ज़िगर के पार हो गया।
बैठे- थाले, हम- दोनों में, प्यार हो गया।
कब तक डरती, प्यार न करती।
कुछ तो होगी, रब की मर्ज़ी।
साँझ- सकारे क्यों, उसका दीदार हो गया।
उसको भी तो मुझपे, ऐतवार हो गया।
रंगों से खेली ना होली,
नादां मैं नादां हमजोली।
दीवाने को दीवानी से सरोकार हो गया।
हँसते- हँसते, प्यार का बुखार हो गया।
श्रीमती रवि शर्मा