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17 Jan 2021 · 1 min read

साँझ की लाली

छुप रहा सूरज गगन में,
सॉंझ के दामन तले।
ये जमीं दुल्हन बनी है,
दीप तारों के जले।।

एक तो अंजान पथ है,
आपका यह साथ है।
मैं तुम्हारी सांस मैं हूँ,
हाथ मेरे हाथ है।
धड़कनों में गीत बनकर,
तुम हृदयतल में रहो,
दो बदन अब एक होकर
मंजिलों पे बढ़ चले ।।
छुप रहा सूरज गगन में…

मैं हवा बनकर चुरा लूँ,
आपका काजल प्रिये,
गेसुओं को मैं बना लूँ,
नेह का बादल प्रिये ।
रूप में मेंरे मिला लूँ,
रूप यौवन को तेरे।
नेह का बादल फटा है,
प्रीत का अंकुर फले।
छुप रहा सूरज गगन में….

कल्पनाओं के पटल पर
केनवासों को लिये।
रंग कितने भर रही हो,
तुम वितानों को लिये।
मैं तुम्हारी सॉंस में हॅूं,
और तुम धड़कन मेरी।
अब नहीं मंजूर हमको
दो कदम के फासले।।
छुप रहा सूरज गगन में…

स्वरचित,
(जगदीश शर्मा सहज, अशोकनगर म०प्र०)

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 336 Views
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