गीत-या धरती राजस्थान री,
गीत _या धरती राजस्थान री,
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या धरती राजस्थान री, करता इसपे अभिमान री।
लगे स्वर्ग सी सुन्दर ये, न्योछावर कर दूँ जान री।।
या धरती राजस्थान री,करता इसपे अभिमान री।
पन्ना का कलेजा फट जाये,बैरी की खड़ग जब चल जाये।
बेट का लहू फिर बह जाये, लग जाये-बाज़ी जान री।।
या धरती राजस्थान री,करता इसपे अभिमान री।
एक नार हुई क्षत्राणी थी,सिर काट के दी सेनाणी थी।
चूण्ङा की जान बचाणी थी,प्रिय की बच जाये जान री।
या धरती राजस्थान री,करता इसपे अभिमान री।।
पद्यमिनी की अजब कहाणी थी,खिलजी की नीत डिगाणी थी।
जौहर की आग पिछाणी थी,घट ना जाये कोई मान री।।
या धरती राजस्थान री,करता इसपे अभिमान री।
मीरा गिरिधर की दासी थी,दर्शन की बहुत वो प्यासी थी।
राणा के गले की फाँसी थी,रजपूती मिट जाये आन री।।
या धरती राजस्थान री,करता इसपे अभिमान री।
गोरा बादल दो वीर हुए,गोरा के जिस्म के तीर हुए।
रण के ऐसे रणवीर हुए,धड़ का भी हो गुणगान री।।
या धरती राजथान री,करता इसपे अभिमान री।
घायल घोड़ा भी जब दौड़ा,चेतक को लगा जख्म थोड़ा।
स्वामी को सकुशल ला छोड़ा,बच गई मेवाड़ी आन री।।
या धरती राजथान री,करता इसपे अभिमान री।
प्रताप सा कोई वीर नहीं,दुश्मन की उठे शमशीर नहीं।
जो बाँध सके जंजीर नहीं, गाथा-मेवाड़ी शान री।
या धरती राजथान री,करता इसपे अभिमान री।।
या धरती राजथान री,करता इसपे अभिमान री।
लगे स्वर्ग सी सुन्दर ये,न्योछावर कर दूँ जान री।।
या धरती राजथान री,करता इसपे अभिमान री।
✍शायर देव मेहरानियाँ
अलवर, राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
slmehraniya@gmail.com