गीत-मोहक छवि के दरश को मोहन…
?विधा – गीत ?
? तर्ज – तुम्हारी नजरों में हमने देखा…..
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मोहक छवि के दरश को मोहन, प्यासी अंखियाँ तरस रही हैं।
विरह की बदरी हृदय पे छाईं सावन – भादों बरस रही हैं।
किया था वादा मगर न लौटे बसे हो जाकर के द्वारिका में।
विरह की मारी फिरें तड़पती कुंजन – कुंजन लता – पता में।
मधुर – मिलन की अनुभूति से हृदय की कलियाँ हरष रही हैं।
मोहक छवि के दरश को मोहन…..
तुम्हीं हो माता-पिता तुम्हीं हो बन्धु सखा सहारे।
हमारे अंतर की स्मृति में अमिट अनेकों चित्र तुम्हारे।
गुजारे पल की सुहानी यादें जहां में खुशियाँ परस रही हैं।
मोहक छवि के दरश को मोहन…..
तुम्हीं को देखें तुम्हीं को चाहें तुम्हीं को पूजें तुम्हें निहारें।
तुम्हीं हमारे हो प्राणधन प्रभु हमारी सांसें तुम्हें पुकारें।
तुम्हारे चरणों का तेज बनने की कामनाएं सरस रही हैं।
मोहक छवि के दरश को मोहन प्यासी अंखियाँ तरस रही हैं।
विरह की बदरी हृदय पे छाईं सावन-भादों बरस रही हैं।
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तेज 19/04/17✍