गीत …मत मारो माँ कोख में मुझको
*******मत मारो माँ कोख में मुझको
……………
बेटी होकर खुद बेटी का , जीवन छीन रही हो माँ
मर्दो पर इल्जाम लगे क्यूं, तुम ही हीन रही हो माँ
ऐसा क्या गुनाह मेरा जो,गर्भ में ही मारो मुझको
क्या होता जो नाना ..नानी भी, गर्भ में ही मार देते तुझको
तुम लाडो गुडिया रानी से, बहू रानी तक बन बैठी
फिर मेरे ही आने से , तुम क्यों हो रूठी रूठी
तुमने क्यूं सोचा नही , एक बार भाई की राखी का
क्यूं संहार करने पै अडी हो, अपने घर की पाखी का
अब तो तुम गुलाम नही हो, किसी मर्द के बंधन में
क्या मेरा अधिकार नही कुछ, माँ तेरे इस आंगन में
मै आकर माँ तेरे घर को , तुलसी चंदन सा महकाऊंगी
तेरे घर के आंगन में माँ मै भी, गीत खुशी के गाऊंगी
मेरे हक में तुम नही तो, और लडाई लडेगा कौन
मेरे खातिर आखिर माँ तुम , बैठी हो क्यूं इतना मौन
मै भी तेरे घर में माँ , डोली में बैठना चाहूं हूँ
मै भी पापा के सीनें लग, थोडा सा रोना चाहूँ हूँ
मत मारों माँ कोख में मुझको, मै तेरा ही रूप हूँ
तेरे घर की छाया हूँ मै, तेरे घर की धूप हूँ !!
**********
मूल गीतकार
डाँ. नरेश कुमार “सागर”