गीत भी तुम साज़ भी तुम
गीत भी तुम साज़ भी तुम
गीत भी तुम साज़ भी तुम।
मेरी शायरी की आवाज़ भी तुम।।
जबसे तुमपे जाँ निसार हुई है,
तुम्हें पाने को धड़कनें बेकरार हुई है।
बस गई हो जबसे साँसों में तुम,
शायरी में मेरी तब से बहार हुई है।
अनजान भी हो थोड़े हमराज़ भी तुम।
मेरी शायरी की आवाज़ भी तुम।।
तुम ही से थी हर खुशी मेरी,
तुम ही तो थी बन्दगी मेरी।
कर गया था हवाले मौत के,
तुम ही से थी जिन्दगी मेरी।।
मौत भी तुमसे जीने का अन्दाज़ भी तुम।
मेरी शायरी की आवाज़ भी तुम।।
तुम्हारे लिए दिल हर लम्हा पिघलता है,
आज भी तन्हाई में यह दिल मचलता है।
हुए जब से बंद दरवाज़े दिल के,
शायरी में ‘भारती’ के दर्द पनपता है।
करूँ तो करूँ क्या, दिल में आज भी तुम।
मेरी शायरी की आवाज़ भी तुम।।
गीत भी तुम साज़ भी तुम।
मेरी शायरी की आवाज़ भी तुम।।
–सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)