गीत ( भाव -प्रसून )
गीत ( भाव-प्रसून )
गुरुवर के चरणों की रज माथे से लगा लूँगा ।
मन के भावों से मैं अनुपम हार बना लूँगा ।।
कृपा ने उनकी जीवन को एक दिशा दिखायी थी ।
संकट से लड़ना कैसे, वो कला सिखायी थी ।।
विपदा की घड़ियों में भी हार नहीं मानेंगे हम ।
गुरु भक्ति के ब्रह्मास्त्र से लक्ष्य कठिन साधेंगे हम ।।
गुरु की तस्वीरों से वंदनवार सजा लूँगा ।
मन के भावों से मैं अनुपम हार बना लूँगा ।।
गुरु ही जीवन , गुरु ही सांसें, गुरु ही भगवन है ।
गुरु ही तप है , पावन जप है, महकता उपवन है ।।
आप करुणा के सागर हो, जीवन का कल्याण करो ।
आने वाली हर विपदा, हर संकट को निष्प्राण करो ।।
बन एकलव्य आपका, मैं हर कर्तव्य निभा लूँगा ।
मन के भावों से मैं……… अनुपम हार बना लूँगा ।।
© डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
© काज़ी की क़लम
28/3/2, इक़बाल कॉलोनी, अहिल्या पल्टन
इंदौर, मप्र -452006