ग़ज़ल
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ग़ज़ल
ये किसके नाम को इतना पुकारा जा रहा है,
किसी तस्वीर को हर पल निहारा जा रहा है।
चुराकर आंख सबसे जिस तरह तुम देखते हो,
मिरे महबूब होने का इशारा जा रहा है।
बुलंदी हौसलों की कौन रोकेगा यहां पर,
किसी सहरा मे दरिया को उतारा जा रहा है।
वो आंखों की चमक हसते हुए बतला रही ये,
कि उनमें इक मुहब्बत का शिकारा जा रहा है।
नही अहसास जिसको आम लोगो का जरा भी.
उसी के दर पे हाथों को पसारा जा रहा है।
सुना है नींद की आगोश मे जाने से पहले,
मिरी तस्वीर से तकिया संवारा जा रहा है।
मुहब्बत मे सुनो ये इस कदर दीवानगी क्यू.
किसी के हिज्र को अब तक गुज़ारा जा रहा है।
शिकारी को जरूरत ही नही इस जाल की अब,
परिॅदो को दरख्तों पर ही मारा जा रहा है।
मनी ये डोर रिश्ते की बहुत कच्ची थी शायद
तुम्हे वो छोड़कर तन्हा दुबारा जा रहा है
मनीषा जोशी मनी
9873148408