“दिल के बंधन”
प्रस्तुत गीत के चार महत्वपूर्ण पड़ाव हैं, जिन्हें गीत के माध्यम से चार बन्धों में चरणबद्ध करने का प्रयास किया है।
1-प्रथम चरण में नायिका के घर पर शादी की धूम मची है जिसमें सखियों के बीच मेहंदी की रस्म में गाया जाने वाला कोरस गान है।
2-द्वितीय चरण में मुखड़ा के बाद, संबंधित पटकथा की प्रारंभिक पृष्ठभूमि को रेखांकित किया है।
3-तृतीय चरण में माला के द्वारा सखियों को उलाहना भरा गान है ।
4-चतुर्थ चरण में नायक और नायिका का मिलाप एवं नायक का प्रणय निवेदन है ।
कोरस मापनी-2122, 2122, 2122, 212
ढोल बाजे -ढोल बाजे -ढोल बाजे – ढोल न ।
गूँजती शहनाईयों के बीच आकर डोल ना ।।
हाथ में मेंहंदी रचा गजरा सजा कुछ बोल न ।
लाज का परदा हटा, कुछ राज दिल के खोल न ।।
ढोल बाजे-ढोल बाजे……….. (1)
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मुखड़ा – मापनी 2222, 2222, 2222, 2222
सखियों का गान:
चुपके -चुपके चोरी -चोरी, बँध जाते हैं दिल के बंधन।
पुष्पित होकर सारा जीवन, महकाते हैं दिल के बंधन।।
बाबुल के घर से सजधजकर, बन्नो की डोली जाती है।
उस दिन बाबुल के चेहरे पर, कितनी मायूशी छाती है।।
हम सब तन्हा रह जाते हैं, खो जाते हैं गुमसुम बनकर।
मीठी मीठी यादें बनकर, तड़पाते हैं दिल के बंधन ।।
चुपके-चुपके चोरी-चोरी…….
हाथों में कंगन की रूनझुन, गजरे से महके घर ऑंगन।
पैरों में नूपुर की छमछम, माथे पर बिंदिया की झलकन।।
गीतों की सरगम बनकर मैं, नाचूँ मस्त कलंदर बनकर।
अपनी सखियों के सँग सजकर ,खो जाउूँ सरगम की धुन पर ।
सुंदर सुखद सलौने अवसर ,दिखलाते हैं दिल के बंधन । (2)
चुपके-चुपके चोरी चोरी……..
नायिका –
मैं तो साजन की गोरी हूँ, सीधी-साधी भोली सी हूँ ।
मेरे बाबुल की नजरों में, मैं तो अब भी छोटी सी हूं ।।
साजन के संग दुल्हन बनकर, घर से दूर चली जाउूँगी।
सखियों के सपनों में आकर, दस्तक देकर मुस्काउूँगी ।
अंतर्मन की सारी बातें, बतलाते हैं दिल के बंधन।
चुपके-चुपके चोरी-चोरी….. (3)
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नायक-
सूनी सड़कों पर खामोशी,और तुम्हारा साथ मिला है।
मेरी चाहत मुमकिन करने ,देखो सुंदर चॉंद खिला है ।।
मंजिल है बस चंद कदम पर ,दो जिस्मों में आगोशी है।
मेरी बाँहों में बस तुम हो, और तुम्हारी खामोशी है ।।
सबसे सुंदर सच्चे रिश्ते , कहलाते हैं दिल के बंधन ।
चुपके-चुपके चोरी-चोरी………
क्या तुम मेरी मीत बनोगी? जीवन मेरा महकाओगी?
या तुम मेरी नजरों से ,फिर से ओझल हो जाओगी?
कुछ पल और ठहर जाओ, लफ़्जों से अब इजहार करो।
ये प्रेम प्रणय स्वीकार करो , मेरा जीवन साकार करो ।।
तन्हाई में नीरस दिल को, बहलाते हैं दिल के बंधन ।
चुपके-चुपके चोरी-चोरी……….. (4)
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-जगदीश शर्मा “सहज”
अशोकनगर म.प्र.|