गीत : तेजस्वी आत्माएँ
गीत: तेजस्वी आत्माएँ
¤दिनेश एल० “जैहिंद”
( 1 )
वे सारी तेजस्वी आत्माएँ याद हैं……
निज देश का गौरव तथा सौरभ अतीत का,
मन में वह यश-गर्व यश-गर्व उस राजपूत का ।
वह घास की रोटी एवं घासों पर सो जाना,
दाना क्या, दाना, बिन जल पिए रह जाना ।।
खाना वह कसम प्रताप का, चमकती तलवारें याद हैं—
तलवारें क्यों ? वे सारी तेजस्वी आत्माएँ याद हैं ।
( 2 )
देती है सीख हमें उस महाछत्र की यय्यारी,
धोखाधड़ी न कहो कहो उनकी समझदारी ।
कुशल राजनीतिज्ञ थे योद्धा महान देशभक्त,
थे गुनी, गुनखान वे माता के आदर्श-भक्त ।।
उपाधि मिली छत्रपति की, वे सारी कथाएँ याद हैं—
कथाएँ क्यों ? वे सारी तेजस्वी आत्माएँ याद हैं ।
( 3 )
थी लक्ष्मी वीरांगना कहता कौन अबला थी,
सबलता दिखा दी वो दुर्गा रूप सबला थी ।
तलवार क्यों भाले चमचम चमकते बाँहों में,
तड़-तड़ तड़कती बर्छी जिसके मजबूत हाथों में ।।
वह रानी, महारानी जिसकी वह बलिदानी याद है—
बलिदानी क्यों ? वे सारी तेजस्वी आत्माएँ याद हैं ।
( 4 )
छुपा अपार साहस जिसके महान भोलेपन में,
कैसा बल कैसी हिम्मत उस दुर्बल लंबे तन में ।
पथ-प्रदर्शक थे वह किए देश सेवा हरक्षण वे,
कलुष भेद मिटाए हर्षाए भू का कण-कण वे ।।
जिसने सिखाया सत्य-अहिंसा का पाठ हमें याद है—
वह ही क्यों ? वे सारी तेजस्वी आत्माएँ याद हैं ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
26. 01. 2018