गीत ….. जुबां पै मिठास है
******** जुबां पै मिठास है *********
मन में है भेद लाखों , जुबां पै मिठास है
अब तुच्छ राजनिति , कवि के भी पास है
मन में है भेद लाखों ……….
जाति से मुक्त ना वो , जलन से रहा है दूर
देखो तो उसकी शख्सीयत, अब कितनी खास है
अब तुच्छ राजनिति …………..
आगे निकल ना जाये , उससे छोटे दौडकर
गिरना कबूल है उसे , पर ये ना रास है
अब तुच्छ राजनिति …………….
कहते है वो खुद को, सिपाही मैं कलम का
सच तो है ये , वो तालिबानियों के पास है
अब तुच्छ राजनिति …………..
मन में चिढन – दिल में घुटन , दिमाग परेशां
वो अपनी सल्तनत का , एक गुलाम ताश है
अब तुच्छ राजनिति …………
अब ढूंढना मुश्किल , निराला – प्रेम – कबीरा
देख ऐसे जोकरों को , माँ वीणा उदास है
अब तुच्छ राजनिति ………
सच कह दिया है “सागर” , अब अन्जाम भी भुगत
शायद तेरे अंगुठें का , होना अब नाश है
अब तुच्छ राजनिति , कवि के भी पास है
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बैखोफ शायर/गीतकार/लेखक
डाँ. नरेश कुमार “सागर”
9897907490