गीत “आती है अब उनको बदबू, माॅ बाबा के कमरे से”
कैसा हुआ ज़माना देखो
कतराते हैं मिलने से।
आती है अब उनको बदबू,
माॅ बाबा के कमरे से।।
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भूखे पेट स्वयं सोये पर,
घी मखनी का दिया उन्हें।
गीले पर माॅ बाबा सोये,
नया बिछौना दिया उन्हें।
लेकिन अब सोते हैं दोनों
बिन चादर ही उघरे से।
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लुटा दिया जीवन स्वर्णिम सा
देख रेख में बच्चों की।
दीन हीन है दशा उन्हीं की
कर्मवीर उन सच्चों की।।
जीवन हुआ श्राप सम उनका
जीते आज अधमरे से।
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बोझ हुए हैं मातु-पिता अब,
जिनके कंधों पर थे खेले।
घर में भी स्थान नहीं है
वृद्धा आश्रम दिये धकेले।
ज्ञान वान बनते हैं लेकिन
दिखते वो अधकचरे से।
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