गीतिका
चउथा पन आइल हवे, झुलल देह के चाम।
बुढ़वा बुढ़िया सूखि के, भइलन पाकल आम।
साथे केहू ना हवे, हीत मीत भा पूत,
हाय अकेले कटि रहल, जिनगी शेष तमाम।
दूनू प्रानी में हवे, पावन प्रेम प्रगाढ़,
मिलजुल के दूनू जना, सहें शीत अरु घाम।
के आपन बा आन के, सब मतलब के लोग,
बेटा-बेटी नात-हित, खाली बाटे नाम।
सात जनम के छोड़ दीं, करीं आज के बात,
दू पल बा यदि प्रेम के, आगे जियल हराम।
धन दउलत कोठा महल, बीघा खेत जजाति,
प्रेम बिना बेकार बा, सगरो ई सरजाम।
साथी जीवनसंगिनी, से बढि के ना आज,
‘सूर्य’ सदा साथे रहऽ, उनकी आठो याम।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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