गीतिका
आधार छंद- विधाता
मापनी- 1222, 1222, 1222, 1222
समांत- आर, पदांत- करना तुम।
समय है कीमती इसको नहीं बेकार करना तुम।
गवाँ पल व्यर्थ में जीवन नहीं लाचार करना तुम।।1
अगर कोई कभी अपना किसी क्षण रूठ जाए तो,
मनाने के लिए उसको ,सदा मनुहार करना तुम।।2
भुलावे में नहीं आना,फरेबी लोग दुनिया में,
नहीं सुन बात मीठी सी किसी से प्यार करना तुम।।3
अतिथि के रूप में ईश्वर,न जाने द्वार कब आए,
हमेशा दौड़ कर सबका सदा सत्कार करना तुम।।4
कमाई पाप की खाना, सुनो अच्छा नहीं होता,
कभी उत्कोच कोई भी नहीं स्वीकार करना तुम।।5
प्रकृति से है मिला हमको,बहुत कुछ याद रखना ये,
बचाकर वे सभी चीजें, प्रकट आभार करना तुम।।6
कहीं भाषा कही कपड़े ,कहीं खाना कहीं पूजा,
नहीं इस बात को लेकर,खड़ी दीवार करना तुम।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय