गीतिका
काव्य को अनुभूति का अध्याय लिखते रह गए।
हर दुखी की पीर का व्यवसाय लिखते रह गए।।1
लोग आए निर्धनों की फूंक डाली झोपड़ी,
और हम बैठे विवश बस न्याय लिखते रह गए।।2
कर्मशाली के लिए हर वेदना संबल बनी,
आलसी बस सोचते निरुपाय लिखते रह गए।।3
जो सुकोमल प्रेम के संबंध को समझे नहीं ,
भावना का वे सभी अभिप्राय लिखते रह गए।।4
अर्थ ही बिखराव का है मूल कारण जानकर,
पोटली ले भाव की समवाय लिखते रह गए।।5
जाति धर्मों में बँटे सब एकता है ही नहीं,
जो कभी थे आदमी समुदाय लिखते रह गए।।6
सत्य सुंदर की समीक्षा कर न पाए लोग जो,
बस वही शिव को सदा संकाय लिखते रह गए।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय