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17 Jun 2024 · 1 min read

गीतिका

गीतिका
बेरहम हैवान बनकर, बेचकर ईमान को,
कोई कैसे काट देता, एक नन्हीं जान को।

दोस्तो, हमने सुना है, ज़्यादती होती बुरी,
चीर देती एक माँ की, हाय भी इंसान को!

फड़फड़ाते जानवर का, एक कतरा आप खा,
आदमी खुश हो रहा है, भेंट कर भगवान को।

देख, बेदर्दी जहां में, कौन है ऐसा ख़ुदा,
ले रहा जो मौन होकर, निर्दयी के दान को ।

मर गईं संवेदनाएँ, चीख में दबकर सभी,
खोजती हैं रूह सारी, खो चुके सामान को।

जगदीश शर्मा सहज

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