गीतिका
ताटंक छंद आधृत गीतिका
आधार छंद -ताटंक (16-14पर यति,अंत में मगण अनिवार्य )
जहाँ जिस समय जो होना है, वह होता ही होता है।
जान रहा ये मनुज बावला,फिर क्यों अक्सर रोता है।।
रत्नाकर से उसी पुरुष को, केवल मिलते हैं मोती,
जो साहस का परिचय देता,और लगाता गोता है।
दुनिया में फल कभी किसी को,केवल चाह नहीं देती,
वही काटता हर प्राणी जो ,कर्म रूप में बोता है।
जीत वरण करती कच्छप का,लगातार चलता है जो,
शशक हार जाता है क्योंकि,बीच राह में सोता है।
पत्नी बेटा बहू सभी तो,राजनीति का हिस्सा थे,
अब जो आया राजनीति में, नेता जी का पोता है।
कभी-कभी तो न्यायालय भी,सख्त टिप्पणी है देता,
वह कहता है सी बी आई, इक सरकारी तोता है।
पहले व्यक्ति कुकर्म करे फिर,पश्चाताप करे बैठा,
पतित पावनी गंगा में जा,निज पापों को धोता है।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय