गीतिका
गीतिका-*
नत-सिर होकर सत्य झूठ की,जब विरुदावलि गाएगा।
सदाचार, सत्पथ दुनिया को ,बोलो कौन दिखाएगा।।
शीत, वृष्टि, आतप से केवल ,बच पाएगा वह पक्षी,
तिनका-तिनका जोड़ यत्न से,जो निज नीड़ बनाएगा।
रावण – दुश्शासन को भाई ,मान लगाया अगर गले,
नारी की इज्जत पर संकट ,फिर तो निश्चित आएगा।
चकाचौंध जो देख शहर की ,छोड़ गए हैं गाँवों को,
अल्हड़पन गाँवों का उनको ,यादों में सदा सताएगा।
तट पर बैठे रहने से तो, नौका पार नहीं होती,
पार वही पहुँचेगा जो भी, लहरों से टकराएगा।
मौन साधकर बैठ गए यदि ,सत्य-धर्म के अनुगामी,
अनाचार व्यभिचार सुदृढ़ हो,फिर तो शीश उठाएगा।
पंचम सुर को आदर मिलना,सुन लो बहुत जरूरी है,
काग मुँडेर बैठकर वरना ,गर्दभ- राग सुनाएगा।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय