गीतिका
गीतिका
बुरी लगती यहाँ किसको अगर होती बड़ाई है।
बड़प्पन की दिलों में आग लिप्सा ने लगाई है ।।1
जड़ें मजबूत हैं लेकिन हमारी हिल रहीं शाखा,
युवाओं तुम इसे रोको हवा पश्चिम से’ आई है।2
कभी सूखे नहीं तबसे पिता की आँख के आँसू,
कलेजे का रही टुकड़ा हुई जबसे पराई है।3
मिटा आतंक दे आओ लगाकर जान की बाजी,
लड़ो सब साथ में मिलकर छिड़ी जो भी लड़ाई है।4
हवाएँ दे नहीं सकतीं कभी भी साथ दीपक का,
अँधेरा शौक है उनका सदा लौ ही बुझाई है।5
शपथ तो ली नहीं हमने नहीं दुश्मन को’ मारेंगे
अहिंसा का पुजारी हूँ नहीं गर्दन झुकाई है।6
कहा जब सत्य तो हमसे सभी नाराज़ हो बैठे,
मगर हमने कभी डरकर,नहीं चुप्पी लगाई है।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय