गीतिका विधा का परिचय
गीतिका विधा के प्रणेता आचार्य ओम नीरव जी द्वारा रचित गीतिकालोक ग्रंथ के अनुसार , गीतिका विधा का संक्षिप्त परिचय !
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गीतिका: एक परिचय
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गीतिका विधा के प्रणेता आचार्य ओम नीरव जी हैं । उन्हीं के अनुसार गीतिका की परिभाषा निम्नःवत् है:-
गीतिका हिन्दी भाषा-व्याकरण पर पल्लवित एक विशिष्ट काव्य विधा है जिसमें मुख्यतः हिंदी छंदों पर आधारित दो-दो लयात्मक पंक्तियों के पूर्वा पर निरपेक्ष एवम् विशिष्ट कहन वाले पाँच या अधिक युग्म होते हैं जिनमें से प्रथम युग्म अर्थात मुखड़ा की दोनों पंक्तियाँ तुकांत और अन्य युग्मों की पहली पंक्ति अतुकान्त तथा दूसरी पंक्ति समतुकान्त होती है ।
-आचार्य ओम नीरव
संक्षेप में गीतिका की तकनीकी शब्दावली निम्नवत है:-
१- पद
गीतिका की पंक्तियों को पद कहते हैं । प्रत्येक गीतिका के सभी पदों के मात्राभार और लय में एकरूपता होती है ।
(२) युग्म
गीतिका के युग्म में दो पद होते हैं । पहले युग्म ( मुखड़ा) को छोड़कर अन्य सभी युग्मों का पहला पद (पूर्व पद) अतुकांत तथा दूसरा पद (पूरक पद ) तुकांत होता है ।
३- पूर्व पद एवं पूरक पद
युग्म के पहले अतुकांत पद को पूर्व पद तथा दूसरे तुकांत पद को पूरक पद कहते हैं ।
४- मुखड़ा
गीतिका के पहले युग्म के दोनों पद तुकांत होते हैं और इस युग्म को मुखड़ा कहते हैं ।
५- मनका
गीतिका के अंतिम युग्म में यदि रचनाकार का उपनाम आता है तो उस अंतिम युग्म को मनका कहते हैं अन्यथा इसे समापन युग्म कह सकते हैं ।
६- रूपमुखड़ा
यदि किसी गीतिका में दो मुखड़े होते हैं तो दूसरे मुखड़े को रूप मुखड़ा कहते हैं ।
७- तुकांत
काव्य पंक्तियों के अंतिम समान भाग को तुकांत कहते हैं ।
८- पदांत
काव्य पंक्तियों के अंतिम समान भाग (तुकांत)में जो पूरे शब्द आते हैं उन्हें पदांत कहते हैं ।
९- समांत
काव्य पंक्तियों के अंतिम समान भाग के प्रारंभ में जो शब्दांश होता है उसे समान्त कहते हैं ।
उदाहरण:
कैसा यह उपहार जिंदगी ?
किसका यह प्रतिकार जिंदगी ?
इन पंक्तियों में तुकान्त है ……
‘आर जिंदगी’ ।
पदान्त है- ‘जिंदगी’
समान्त है – ‘आर’
१०- अपदान्त गीतिका
जिस गीतिका में पदान्त नहीं होता है अर्थात केवल समान्त ही होता है उसे अपदान्त गीतिका कहते हैं ।
११- अनुगीतिका
जिस गीतिका के सभी युग्म मिलकर किसी एक ही विषय का प्रतिपादन करते हैं उसे अनुगीतिका अथवा धारावाही गीतिका कहते हैं ।
१२- संबोधन दोष
जब युग्म में किसी व्यक्ति के लिए ‘तू’, ‘तुम’ और ‘आप’ में से , एक से अधिक संबोधनों का प्रयोग किया जाता है तो इसे संबोधन दोष कहते हैं ।
१३- वचन दोष
जब युग्म में किसी के लिए एक वचन तथा बहुवचन दोनों का प्रयोग किया जाता है अथवा एकवचन कर्ता के लिए बहुवचन क्रिया या बहुवचन कर्ता के लिए एकवचन क्रिया का प्रयोग किया जाता है तो इसे वचन दोष कहते हैं । उर्दू काव्य में इसे “ऐबे-शतुर्गुर्बा” के नाम से जाना जाता है ।
१४- पदान्तसमता दोष
मुखड़ा से भिन्न किसी युग्म के पदों के अंत में यदि कोई समता पाई जाती है तो उसे पदान्तसमता दोष कहते हैं उर्दू काव्य में इसे ‘ऐबे- तकाबुले -रदीफ’़ के नाम से जाना जाता है ।
१५- पुच्छलोप दोष
गीतिका के पद के अंत में यदि लघु का लोप किया जाता है तो इसे ‘पुच्छलोप दोष’ कहते हैं ,जैसे कबीर को 12 मात्रा भार में कबी या कबीर् जैसा पढ़ना । उर्दू काव्य में इसे दोष नहीं माना जाता है ।
१६- अकारयोग दोष
गीतिका में यदि दो शब्दों के बीच ‘दीर्घ स्वर संधि’ के नियमों के विपरीत संधि की जाती है तो इसे अकारयोग दोष कहते हैं ।
जैसे हम+अपना = हमपना ,
आप+ इधर = आपिधर ,
लोग + उधर =लोगुधर ।
उर्दू काव्य में इसे दोष नहीं माना जाता है और “अलिफ वस्ल” के नाम से जाना जाता है ।
१७-*आधार छंद*
जब गीतिका की लय को किसी छंद द्वारा निर्धारित किया जाता है तो उस छंद को आधार छंद कहते हैं ।
१८- मात्राभार
किसी वर्ण का उच्चारण करने में लगने वाले तुलनात्मक समय को मात्राभार कहते हैं ।
१९- वाचिक भार
किसी शब्द के उच्चारण के अनुरूप मात्राभार को वाचिक भार कहते हैं जैसे विकल का वाचिक भार 12 है क्योंकि विकल का उच्चारण “वि कल” होता है “विक ल” नहीं ।
२०- वर्णिक भार
किसी शब्द के वर्णों के अनुरूप मात्राभार को वर्णिक भार कहते हैं जैसे विकल का वर्णिक भार 111
है ।
२१- मापनी
किसी काव्य पंक्ति की लय को निर्धारित करने के लिए प्रयुक्त मात्रा क्रम को मापनी कहते हैं । जैसे ……हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए….. इस पंक्ति की मापनी है ….
2122 2122 2122 212
गालगागा गालगागा गालगागा
गालगा
२२- लय
किसी काव्य पंक्ति को लघु गुरु के स्वाभाविक उच्चारण के साथ पढ़ने पर जो विशेष प्रभाव मन में स्थापित हो जाता है उसे लय कहते हैं ।
२३- धुन
किसी काव्य पंक्ति को स्वरों के आरोह-अवरोह के साथ जिस प्रकार गाया जाता है उसे धुन कहते हैं । ‘एक ही लय’ की पंक्ति को अनेक धुनों में गाया जा सकता है ।
२४- मात्रा पतन
जब काव्य पंक्ति को लय में लाने के लिए किसी गुरु वर्ण को लघु उच्चारण में पढ़ना पड़ता है तो इसे मात्रा पतन कहते हैं ।
२५- चरण
छंद की विशिष्ट पंक्तियों को ‘चरण’ कहते हैं । चरण शब्द का प्रयोग केवल छंदों में होता है जबकि अन्य काव्य विधाओं में ‘पंक्ति’ या पद शब्द का प्रयोग होता है ।।
२६- यति
काव्य पंक्ति को लय में पढ़ते समय, पंक्ति के बीच मैं जिस स्थान पर थोड़ा सा विराम लेना आवश्यक होता है , उसे ‘यति’ कहते हैं । परंपरा से प्रायः चरण के अंत को भी एक यति मान लिया जाता है ।
२७- कलन
किसी काव्य पंक्ति में मात्र आभार की गणना को कलन कहते हैं इसे उर्दू में ‘तख्तीअ’ कहते हैं ।
२८- गण
33 लघु और गुरु वर्णों के संभव 8 समूहों को गण कहते हैं। जैसे
यगण (यमाता -122 ) , मगण
(मातारा -222), तगण (ताराज- 221), रगण (राजभा -212), जगण ( जभान-121), भगण (भानस -211), नगण ( नसल-111) और सगण ( सलगा -112).
२९- अंकावली
अंको में व्यक्त किए गए मात्रा क्रम को अंकावली कहते हैं ।
३०- लगावली
लघु को ल से और गुरु को गा से इंगित करते हुए जब किसी काव्य पंक्ति के मात्रा क्रम को व्यक्त किया जाता है तो उसे लगावली कहते हैं ।
३२- स्वरक
लघु गुरु मात्राओं के वाचिक समूहों को स्वरक कहते हैं ।
३२- स्वरावली
जब किसी काव्य पंक्ति के मात्रा क्रम को स्वरकों के पदों में व्यक्त किया जाता है तो उसे स्वरावली कहते हैं ।
आचार्य ओम नीरज जी की कृति गीतिकालोक से उधृत .! ०००
प्रस्तुति-
महेश जैन ‘ज्योति’, मथुरा ।
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