*(गीता जयंती महोत्सव)* *श्रीमद्भगवद्गीता,गौमाता और भारतीय जनमानस की समस्याएं*
(गीता जयंती महोत्सव)
श्रीमद्भगवद्गीता,गौमाता और भारतीय जनमानस की समस्याएं
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भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता के विभूतियोग नामक अध्याय में विभिन्न प्रकार की विभूतियों का विवरण दिया है! लेकिन शायद भगवान् श्रीकृष्ण रामदेव बाबा वाली उस ‘गधी’ का नाम लेना भूल गये,अपने आश्रम में जिनका अमृतरुपी दुग्धपान रामदेव बाबा खुद कर रहे हैं!गीता के विभूतियोग नामक अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण अपने आपको सभी जीवों का आत्मा, विष्णु, सूर्य, मरीचि, चंद्रमा, सामवेद, इंद्र, मन, भूतों की चेतना, शंकर,कुबेर, अग्नि, सुमेरु, बृहस्पति, स्कंद, समुद्र, भृगु, ओंकार, जपयज्ञ, हिमालय, पीपल, नारद, चित्ररथ, कपिल, उच्चैःश्रवा, ऐरावत, राजा, वज्र, कामधेनु, कामदेव, वासुकी, शेषनाग, वरुण, अर्यमा, यमराज, प्रह्लाद, समय, मृगराज, गरुड़, वायु, श्रीराम, मगर ,गंगा,ब्रह्म विद्या, वाद, द्वंद्व समास, अकार, महाकाल, बृहत्साम, गायत्री, मार्गशीर्ष, वसंत, जुआ, तेज, विजय, निश्चय, सात्विक भाव, वासुदेव, धनंजय, वेदव्यास, शुक्राचार्य, दंड, शक्ति, नीति, मौन, तत्वज्ञान आदि कहा है!घोडों में उच्चैःश्रवा तो बतला दिया लेकिन गधों के बारे में कुछ भी नहीं कहा है! वह कमी बाबाजी ने पूरी कर दी है! एकक्षुर पशुओं में मैं बाबा रामदेव को दूध देने वाली गधी हूँ!यह गधी तथा इसका पूरा परिवार अब बाबा जी पर धनवर्षा करेगा!गधी के दूध से बाबाजी अब सौंदर्य प्रसाधन का महंगा सामान बनाकर बाजार में बेचने को तैयार हैं! बेचारी गौमाता को कोई नहीं पूछ रहा है! वो गौघृत,गौमूत्र और गौबर से तो बहुत माल बना लिया है! अब गौमाता किस काम की? प्रतिदिन हजारों की संख्या में कत्लखानों में कत्ल होने वाली गौमाता के रक्षार्थ बाबाजी ने दिल्ली में कोई धरना प्रदर्शन नही किया है!करें भी क्यों? क्योंकि अब तो गधी को माता मानकर उसकी पूजा शुरू होने वाली है!वैसे यह अजीब है कि गौमाता प्रेमी भगवान् श्रीकृष्ण ने विभूतियोग में गाय के संबंध में खुद को कामधेनु कहा है!लेकिन उसी भगवान् श्रीकृष्ण की जन्म और कर्मभूमि भारत में प्रतिदिन धडल्ले से हजारों गायों का कत्ल हो रहा है! क्या श्रीमद्भगवद्गीता में इस समस्या का कोई समाधान मौजूद है? यदि समाधान मौजूद है तो फिर हमारे लाखों साधु, संत, महात्मा,कथाकार, संन्यासी,स्वामी और नेता उस समाधान को लागू करके गौमाता की रक्षा क्यों नहीं कर रहे हैं?
कुरुक्षेत्र में गीता जयंती महोत्सव मनाया जा रहा है!उपराष्ट्रपति धनखड़ जी भी इस महोत्सव में आ चुके हैं!उन्होंने यहाँ पर श्रीमद्भगवद्गीता से अभिशासन पंचामृत की बात कही है! लेकिन इन्हें आचरण में उतारने के संबंध में कोई भी नहीं बोल रहा है!मुख्य मुद्दा तो गीता के उपदेश को नेताओं,मंत्रियों, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति,राष्ट्रपति सहित विभिन्न धर्मगुरुओं, गीता मनीषियों द्वारा खुद के आचरण में उतारना है!बस, केवल यही काम नहीं हो रहा है और ये तथाकथित महान लोग मंचों से कुछ का कुछ कहते रहते हैं! उपराष्ट्रपति महोदय ने गीता से सार्थक संवाद, व्यक्तिगत शुचिता, निस्वार्थ यज्ञभाव,
करुणा तथा परस्पर भावना को ग्रहण करने को कहा है!कुरुक्षेत्र के नजदीक ही अंबाला में किसान पिछले एक वर्ष से अपने अधिकारों के लिये आंदोलनरत हैं और सरकार उन पर लाठी, गोली, अश्रु गैस, जहरीली गैस का प्रयोग कर रही है!शंभू बार्डर को भारत -पाकिस्तान की सीमा बना रखा है! इस समस्या पर भी यह पंचामृत अभिशासन वाला फार्मूला अपना लेते!जिसके जो मुंह में आया, बिना सोचे बोल रहे हैं! भारत की यथार्थ समस्याओं से शासक, प्रशासकों, संतों, महंतों, धर्मगुरुओं, संन्यासियों को कोई मतलब नहीं है!जब श्रीमद्भगवद्गीता में भारत की सभी समस्याओं का समाधान मौजूद है तो फिर देर किस बात की है? क्यों विदेशों से तकनीक की भीख मांग रहे हो? क्यों विदेशों से हथियार खरीद रहे हो? क्यों विदेशों से कच्चा तेल खरीद रहे हो?क्यों पाम आयल विदेशों से खरीद रहे हो? क्यों अंग्रेजी भाषा में काम कर रहे हो? क्यों लाखों विद्यार्थी विदेशों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं? क्यों आदिवासी, दलित और पिछड़े धर्म बदलकर ईसाई, मुसलमान और बौद्ध बन रहे हैं? क्यों भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा बेरोजगारी,भूखमरी, बिमारियाँ, अपराध, भ्रष्टाचार,अन्याय, भेदभाव, ऊंच -नीच, अशिक्षा तथा किसानों की गुलामी मौजूद हैं! श्रीमद्भगवद्गीता से उपरोक्त सभी, समस्याओं का समाधान कर दो! इनको शर्म भी नहीं आती है!इन्होंने सारी नैतिकता, संवेदनशीलता, धार्मिकता को हिंदू महासागर में दफन कर दिया है! भूखमरी के कारण भारत के 80 करोड़ से अधिक लोगों को पांच किलो अनाज फ्री में दिया जा रहा है!श्रीमद्भगवद्गीता से इस समस्या का समाधान कर लो! सही बात तो यह है कि धर्म की आड़ लेकर जनमानस को बेहोश किये रहना है! ताकि जनमानस को भारत की सही समस्याओं से अवगत होने से रोका जा सके! इससे इनका लूटखसोट और भ्रष्टाचार का धंधा जोरदार ढंग से चलता रहता है! कभी गीता, कभी, गाय, कभी गंगा,कभी राममंदिर, कभी हिंदुत्व, कभी हिन्दू राष्ट्र के थोथे नारे देकर अपनी दुकानदारी चलाते जाना इनकी सोच है!धरातल पर विकास के काम करने नहीं हैं! सबसे बड़ा षड्यंत्र तो यह है जिसके अंतर्गत सनातन धर्म को ईसाई और इस्लाम मजहबों की तरह से एक मजहब बनाने के लिये जोरदार तरीके से काम हो रहा है! वास्तव में ही सनातन धर्म खतरे में है! और इसके साथ साथ श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भी खतरे में है! इन नकली सनातनियों के होते हुये वेद, उपनिषद्,षड्दर्शनशास्त्र,
रामायण, महाभारत, स्मृति,धर्मसूत्र,गृहसूत्र, संस्कृत और भारती हिंदी भाषाएँ आदि सभी खतरे में हैं! स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता खतरे में है! श्रीमद्भगवद्गीता इन धूर्तों से खुद अपनी रक्षा भी नहीं कर पा रही है, तो फिर श्रीमद्भगवद्गीता भारत की बेरोजगारी,भूखमरी, बिमारी, भ्रष्टाचार , अन्याय, अधर्म, अनैतिकता आदि का समाधान क्या खाक करेगी?
भारत के 1 फीसदी लोग 53 लाख प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कमाते हैं!भारत की कुल आमदनी का 22 प्रतिशत इनके हिस्से में आता है! 10 फीसदी 13.50 लाख प्रति वर्ष कमाते हैं! कुल आमदनी का 57 प्रतिशत इनके हिस्से में आता है! कहने का निहितार्थ यह है कि 11 फीसदी लोगों के पास भारत की 90 प्रतिशत संपत्ति मौजूद है!बाकी बचे 89 प्रतिशत लोगों के हाथों में क्या है? इनके हाथों में सिर्फ गरीबी,अभाव,बेरोजगारी, बदहाली,भूखमरी, प्रताड़ना, बिमारी,असमय मौत आदि आते हैं!श्रीमद्भगवद्गीता, गीतानंद और गीता-मनीषियों के पास इसका कोई समाधान मौजूद हो तो प्रस्तुत करें!यदि शास्त्रों में भारत की समस्याओं के समाधान मौजूद होते तो भारत पर सैकड़ों आक्रमणकारी हमले करने में सफल नहीं हो पाते! भारत 1300 वर्षों तक गुलाम नहीं बना रहता! और तो और आक्रमणकारियों से शास्त्र स्वयं अपनी रक्षा ही नहीं कर पाये!जब शास्त्रों को पढने और पढाने वाले तथा राष्ट्र के शासक -प्रशासक ही भ्रष्ट,अनैतिक,अपराधी,
अय्यास, शोषक और चोर होंगे तो शास्त्र क्या कर लेंगे?शास्त्र तो खुद कुछ भी नहीं कर पायेंगे!
श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करने वाले पाठक और साधक भगवान् श्रीकृष्ण की दृष्टि में ‘गौ माता’ के महत्व को बतलाने वाले अग्रलिखित श्लोक को तो जानते ही होंगे—
‘सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन:!
पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता…!!’
अर्थात् सभी उपनिषद् गाय हैं! दूध को दूहनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण हैं!अर्जुन बछड़ा है! सुधी भक्त इस दूध को पीने वाले हैं!
भगवान् श्रीकृष्ण की दृष्टि में उपनिषद्,गाय और श्रीमद्भगवद्गीता के महत्व को उपरोक्त श्लोक के माध्यम से दर्शाया गया है!लेकिन आजकल तो गाय का कोई महत्व ही नहीं रह गया है! प्रतिदिन हजारों की संख्या में कत्लखानों में कत्ल होती गाय,विदेशों को भारी मात्रा में गौमांस का निर्यात,गौशालाओं में भूखों मरती गौमाता,गंदगी में प्लास्टिक खाती हुई गाय,नेताओं द्वारा वोट के लिये प्रयोग की जाने वाली गाय तथा स्वयं हिन्दू द्वारा अपने द्वार से दुत्कारी जाती हुई गौमाता अपनी दयनीय दशा खुद ही बतला रही है!शायद अब हिन्दू के लिये गाय गौमाता नहीं रही है!गाय अब हिन्दू के लिये भारस्वरुप हो गई है!इसीलिये साधु महात्मा भी अब गौमाता से मुंह फेरने लगे हैं!
यह ध्यान रहे कि भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता, श्लोक 18/44 में खेतीबाड़ी को वैश्य कर्म बतलाया है!देखिये-
कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्!!
अर्थात् खेतीबाड़ी, गौपालन तथा व्यापार आदि वैश्य के स्वाभाविक गुण हैं!
इस समय धर्मनगरी के नाम से पहचान रखने वाले धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में आयोजित ‘गीता जयंती महोत्सव’ में जमीन से जुड़े हुये भारत की कुल आबादी के 57 प्रतिशत मेहनतकश किसान-वर्ग की दुर्दशा पर किसी के मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा है!क्या गीता का उपदेश सिर्फ सैमिनार, गोष्ठी, व्याख्यान और कांफ्रेंस में समय व्यतीत करने, पारिश्रमिक बटोरने, सैर सपाटे और अहंकार प्रदर्शन करने के लिये ही है? क्या गीता के उपदेश का जनमानस की जमीनी समस्याओं से कोई संबंध नहीं है? आखिर हमारे साधु, संत और गीता मनीषी सनातन धर्म और संस्कृति को कहाँ लेकर जा रहे हैं? इस तरह से तो सनातनी जनमानस श्रीमद्भगवद्गीता सहित समस्त शास्त्रों से दूर हो जायेगा!
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र- विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119