गीता का ज्ञान
!! श्री कृष्ण !!
गीता का ज्ञान
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कर्म कर तू अपना निष्काम, कह रहे स्वयं कृष्ण भगवान ।
मैं ही कर्म क्रिया कर्ता हूँ , मैं ही तत्व प्रधान ।।
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मैं ही कारण मैं ही कारक , मैं सर्जक संहारक हूँ ,
मैं ही पोषक मैं ही शोषक, गुण अवगुण का धारक हूँ ,
स्थित है मुझमें ही सबकुछ, मैं ही परम महान ।(१)
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मैं ही कण- कण में हूँ व्यापक, साध्य साधना साधक मैं,
रस प्रकाश पुरुषत्व शब्द मैं, गंध तेज तप वाहक मैं ,
मैं ही नाद प्रणव का गुंजन , योग समाधी ध्यान ।(२)
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मैं ही मारूँ मैं ही मरता ,मैं ही दुख दुखहर्ता हूँ ,
मैं ही सुख मैं ही सुख कर्ता , प्रकृति प्रलय का कर्ता हूँ ,
मैं ही काल चक्र का नायक, मैं विधि और विधान । (३)
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ये तो पार्थ सभी हैं मरने , मृत्यु खड़ी है वरने को ,
देकर इन्हें मृत्यु का फल तू ,भेज काल मुख भरने को ,
फिर गांडीव उठा ले अर्जुन , बात अरे अब मान । (४)
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दिव्य दृष्टि देता हूँ तुझको, देख विराट रूप मेरा ,
तेरे मन से हट जायेगा, मेरी माया का घेरा ,
कर तू केवल कर्म छोफल पाने का ध्यान ।(५)
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-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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