गीत(दिगपाल छंद)
जब जब तुम्हें पुकारा,घनश्याम हे मुरारी
तुमने सदा हरी हैं ,विपदा सभी हमारी
ये ज्ञान तुम हमें दो ,सदमार्ग पर चले हम
विनती यही ,न कम हो , हम पर दया तुम्हारी
जब द्रोपदी सभा में आँसू भरे खड़ी थी
अपनों के सामने ये कैसी विकट घड़ी थी
सुनकर पुकार उसकी तब लाज थी बचाई
जयकार तेरी करते हर आँख रो पड़ी थी
फिर से तुम्हें पुकारे , लाचार आज नारी
तुमने सदा हरी हैं,विपदा सभी हमारी …….
खा साग ले विदुर का, भगवान भक्त द्वारे
तंदुल सुदामा लाये ,तो तीन लोक वारे
माखन चुरा चुरा कर ,सबको रिझाते मोहन
बंसी मधुर सुने जब ,दिल गोपियों ने हारे
सब पूजते तुम्हें हैं ,राधा रमन बिहारी
तुमने सदा हरी हैं, विपदा सभी हमारी …….
गीता का ज्ञान भूली, अब तो प्रजा तुम्हारी
दुश्मन यहाँ बहुत हैं, खो सी गई है यारी
नफरत बढ़ी यूँ दिल में , लड़ते हैं भाई भाई
संतान को भी लगते ,माता पिता ही भारी
फिर तुमको लेना होगा, अवतार चक्रधारी
तुमने सदा हरी हैं, विपदा सभी हमारी …….
Updated on 20-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद