गिरता है धीरे धीरे इंसान
मूल्य अच्छा मिल गया तो मूल्य बेच दी।
लाज न आ जाए कहीं तो लाज बेच दी।।
कुछ हो गई थी आदत यूं बेचने का दोस्त।
अम्मा का आंचल बेचा ममता भी बेच दी।।
अब हो गया लती मैं, है जो शेष बेच दूंगा।
संबंध रिश्ते नाते, कुटुंब परिवेश बेच दूंगा।।
किस्मत से हाथ लग गई जो देश की ये सत्ता।
यदि मूल्य मिला मुझको तो मैं देश बेच दूंगा।।
जै हिंद