गिद्ध हैं सारे के सारे !
ये जो बंगाल में हो रहा है, क्या वो हमारे मतलब का है ? है ही लोकतंत्र पर ये बड़ा सबाल है। और हम इस लोकतंत्र के अहम हिस्स्से।
तो मतलब तो है ही।
हर चार साल बाद लोक सभा के चुनाव का समय ज्यों-ज्यों नजदीक आता है, हमें फोकट में रामलीला देखने का मौका मिल ही जाता है।पर इस बार अलग और नया हो रहा है, ये 2019 का साल है अनोखा,अनूठा और ऐतिहासिक है । सरकार के इस पुरे सत्र में उन्होंने ऐतिहासिक से कम कुछ किया ही नहीं तो इस चुनावी माहौल को ऐसे ही कैसे बीतने देते उनका करम है जो इस बार रामलीला के साथ हमे जट-जटीन भी देखने को मिल रहा है। जगह है ममता का बंगाल अरे कमाल कर रही है ये दोनों सरकार मिल के। देखो तो इन्हे हमारी कितनी चिंता है, जिन लोगों का ‘शारदा चिट फंड’ में पैसा डूब गया उनकी बात कर रही हूँ। अब तक बेचारे को याद ही नहीं था कब से ये मामला चल रहा है। जैसे ही चुनाव नजदीक आया हमारी फिक्र में आधे हुए जा रहे हैं। और सारा तांडव रच रहे हैं।
अरे आप लोगों को बताती हूँ पूरा मामला क्या है, ‘शारदा चिट फंड’ का। शारदा चिट फंड 2008 में शुरू होती है, भोले भाले लोगों, आम आदमी हमारे आप के जैसे लोगों को लूटने के लिए। और कामयाब भी होती है देखते ही देखते हजारो करोड़ का मालिक हो जाती है । जिसका खुलासा अप्रैल 2013 में ही हो जाता है। जिस से सब को पता चलता है कि शारदा चिट फंड कम्पनी लोगो को 34 गुना मुनाफा देने के नाम पर पैसा ठगा गया। इस्थिति ऐसी भी आई जब लोगों ने एजेंटो से अपना पैसा मांगना शुरू किया तो कितने ही एजेंटो ने आत्म हत्या कर ली और बहुतों के मरने का कारण भी सामने नहीं आया। ये सब लोग जानते हैं,बात यहीं खत्म नहीं होती इस में ठगे जाने वाले लोगों की संख्या दस लाख से ज्यादा की है। इस घोटाले में चालीस हजार करोड़ रूपये की ठगी हुई है। इसी के मद्दे नजर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जांच का आदेश दिया था और साथ में असम,उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के पुलिस को ताकीद की थी की इस प्रक्रिया में cbi का सहयोग करे । अब सबाल ये उठता है की पुलिस कमिश्नर का इस में क्या रोल है ? तो जान लीजिये 2013 में जब शारदा चिट फंड मामला सामने आया था तब इन्होने ही उसका उस मामले की अध्यक्छता की थी। और घोटाले से जुड़े कागजातों को गायब करवाया था या यूँ की गायब हो गया था। इसी मामले में cbi पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करना चाहती थी। पर इस के लिए उन्हें इतना लम्बा इंतजार करना पड़ा पुरे चार साल तक के लिए इन सालों में न मोदी जी को उन दस लाख लोगों की चिंता थी न ही cbi को अब अचानक सब को चिंता होने लगी। ये सब हम लोगों का ध्यान भटकाने का खेल है ताकि हम असली मुद्दे को भूल कर इन लोगों के तू-तू मैं-मैं में उलझ कर रह जाएं। हम में इतना भी सोचने का कूबत न बचे कि ये लोग जिस खेल को खेल रहें हैं उसका अंत में यही फैसला करेंगे की जो भी सत्ताधीश पार्टी है वो गंगा नहा के पवित्र और सारे अपवित्र। ताकि हमारी हर पाँचवे साल में ढोल जैसी हालत हो जाय जो भी आये बजा के चला जाय शुद्ध और पवित्र लोग। इनकी अगर मनसा इतनी ही साफ थी तो अभी दो तारीख को दिल्ली में जो पांच करोड़ साठ लाख लोगों को जो पर्ल कॉर्पोरेशन ने बचत योजना के नाम पे लूट लिया जिसमे तीन साल पहले ही 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि इनके पैसे लौटाए जायं तीन साल गुजर गया इन गरीबो पे न हमारे फकीर प्रधान सेवक की नजर तब परी न अब। लेकिन बंगाल बाले गरीबों के अचानक हितैसी हो गए। वाह रे कमाल करते हो सेवक जी…
गिद्ध हैं सारे के सारे बस हमारी बोटियाँ नोचना जानते हैं। सत्ता के भूखे लालची लोग …
(सिद्धार्थ)