“गार्ड साहब”
गार्ड साहब मालगाड़ी के पीछे
सीटी बजाते हुए।
हाथ में झण्डी, कर्तव्य की भावना
चौकसी से जागना।
अंतिम बोगी, श्वेत रंग की वर्दी
गर्मी, वर्षा या सर्दी।
हाथ में टॉर्च , हिसाब की डायरी
डगमगाती बोगी।
एकांत पल, रेगिस्तान, जंगल
रेल का कोलाहल ।
सरिया ,खाद, कोयला लदा हुआ
पीछे का काला धुँआ।
अंतिम डिब्बा मालगाड़ी की चाल
पटरियों का जाल।
दर-ब-दर
विशाल रास्तों पर, रात-दिन सफर।
अकेलापन हावी होता ही नहीं
गार्ड साहब पर।
जगदीश शर्मा सहज